साथियों नमस्कार, आज हम आपके लिए गुरु शिष्य पर आधारित एक ऐसी कहानी “Moral Stories in Hindi | असली शिक्षक” लेकर आएं हैं जिसे पढ़कर आपको एक शिक्षक और विधार्थी के बिच के प्रेम व् सामंज्यास को समझने का मौका मिलेगा| आपको हमारी यह कहानी कैसे लगती है हमें Comment Section में जरुर बताएं|
Moral Stories in Hindi | असली शिक्षक
सोमवार की सुबह दिवार पर लटकी संगीतमाय घडी 11 बजने का आभास पहले संगीत से फिर 11 घंटे बजाकर कराती है। रवि के घर में उसके स्कूल जाने की तैयारियां अब जोर पकड़ने लगती है।
वैसे तो रोज इस समय तक सारी तैयारियां हो जाती है पर आज रवि दो दिन से स्कूल जा रहा है| इस कारण तैयारियों का कार्यक्रम तनिक देरी से चल रहा है।
रवि सुबह जल्दी 6 बजे उठ गया था और टूशन जाकर भी आ गया लेकिन वहां से वापस आ कर अखबार पढ़ते पढ़ते उसे नीदं आ गई जो उसकी आँख अभी तोड़ी देर पहले खुली।
स्कूल ड्रेस को वह खुद इस्त्री कर रहा है पर अभी जूते पोलिश करना, बस्ता जमाना भी तो बाकी है। ड्रेस को इस्त्री करते करते रवि अपनी माँ से बोला ”खाना बना कर मेरा टिफिन भी पैक कर देना” माँ ने आश्चर्य से पूछा ”आज लंच टाइम में खाना खाने घर नहीं आएगा क्या?”
उसने बताया “शुक्रवार को स्कूल में बोल रहे थे कि गेट पर ताला लगा दिया जाएगा, जो स्कूल समय में कोई भी बाहर ना जा सके। इसलिए, मेरे तो टिफिन डाल दो क्या पता लंच में आज घर आ पाऊ या या नहीं।” इतना बोल वो वापस तैयारियों में जुट गया।
रवि पास के सरकारी स्कूल में पिछले कुछ सालों से पढ़ रहा है। बचपन से प्राईवेट स्कूल में पढ़ा होने के कारण उसकी अच्छे से तैयार होकर स्कूल जाने की आदत पड़ी हुई थी वरना उसकी कक्षा के कुछ छात्र तो बगैर जूते, कुछ सलवटों से भरी ड्रेस पहने, कुछ के शर्ट बाहर निकले हुए, और कुछ तो बगैर बस्ते हाथ में दो चार किताब लिए हुए आ जाते थे।
समय रहते सारी तैयारी हो गई और रवि तय समय पर स्कूल के लिए निकल पड़ा। स्कूल पहुँच कर रवि सीधा अपनी कक्षा में पहुँचा। बस्ते को कक्षा में रख कर प्रार्थना में जाने के लिए अपने दोस्त विनोद के साथ मैदान की तरफ जाने लगा।
रास्ते में उसने “शनिवार का दिन स्कूल में कैसा रहा” इसके बारे में विनोद से पूछा तो वह बोला ”यार तु तो “शनिवार को आया नहीं पर उस दिन गजब हो गया।
लंच के बाद उपप्रधानाचार्य सर कक्षा में आये और अपनी कक्षा में सिर्फ 5 छात्रों को देखकर काफी नाराज हुए, फिर माॅनीटर से हाजरी भी नोट करवाई।”
”बाकी के सारे कहां गये थे ?” रवि ने पूछा। ”लंच में कुछ खाना-खाने स्कूल से बाहर गये थे जो वापस आए ही नहीं। आज पता नहीं क्या होगा ? मुझे तो अजीब सा ड़र लग रहा हैं।”
विनोद बस इतना बोल के चुप हो गया। ”डर मत यार। मैं तो छुट्टी पर था और तु कक्षा में मौजूद था। तो हम दोनो को डरने की जरूरत नहीं। डरेंगे तो वे बाकी के 60 छात्र जो कक्षा से भाग गए थे।” रवि विनोद को ये सब बोल हिम्मत बढ़ा ही रहा था कि प्रार्थना सभा स्थल आ गया और वे दोनो लाईन में खड़े हो गए।
प्रार्थना अपने निर्धारित समय पर चालु हो गई और जैसे ही खत्म हुई मंच पर से उपप्रधानाचार्य की आवाज माईक से गूंजी ”कक्षा बाहरवीं के छात्रों में से जिनका मैं नाम ले रहा हुँ उनको छोड़ कर बाकी के सारे छात्र उधर अलग लाईन बनाएँ|
विनोद का नाम मंच से बोला गया सो वो तो बच गया लेकिन रवि का नाम नहीं बोले जाने से उसे ताज्जुब हुआ। न चाहते हुए भी रवि को उस अलग वाली लाईन में खड़ा होना पड़ा।
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माईक पर अब बोला गया ”पूरी स्कूल अच्छे से देख लो इस लाईन को। ये सभी भागने वाले महान छात्र है। इनका आज सभी लोग देखलो मैं क्या ईलाज करता हूँ। “उस लाईन की तरफ हाथ करते हुए, फिर से बोले ”मुर्गा बनो सभी”। ये सुनकर रवि की धड़कने तेज हो गई।
लाईन के सारे लड़के एक दूसरे को देखते रहे पर मुर्गा कोई नहीं बना। ये देख मंच से मुर्गा बनने का निर्देश फिर से गुस्से के साथ दिया गया। डर के मारे धीमें धीमें सारे लड़के मुर्गा बनने लगे लेकिन रवि खड़ा रहा।
वो खड़ा-खड़ा मन ही मन में सोचता रहा मेरी क्या गलती? मैं तो आया ही नहीं था। मैं क्यों मुर्गा बनु। रवि को खड़ा देख कर उपप्रधानाचार्य और ज्यादा गुस्से में आ कर मंच से चिल्लाए, ”लड़के! मुर्गा बन जल्दी”।
रवि ने सर हिलाकर मना कर दिया तो उनका धेर्य जबाव दे गया और मंच पर से तेजी से उतर कर सीधे रवि के पास पहुँचे |आव देखा न ताव उसका कान पकड़ कर मरोड़ दिया।
रवि हिम्मत करके जोर से बोला ”सर मैं छुट्टी पर था। “मैं भागा नहीं” पर वो कहां सुनने वाले थे। उन्होने एक जोरदार थप्पड़ रवि के गाल पर जड़ दिया और उसे झुका कर कमर में मुक्का भी मार दिया।
प्रार्थना में खड़े सभी लोगों का ध्यान इन दोनो पर आ गया। रवि जोर से चिल्लाया ”मेरी कोई गलती नहीं सर। मैंने तो माॅनीटर को छुट्टी की अर्जी भी दे रखी थी। आप उससे पुछते क्यों नही।”
वक्त की नजाकत को समझ माॅनीटर भी दौड कर झट से आ गया और कहा ”हाँ सर। रवि का प्रार्थना पत्र मेरे पास आया हुआ था और वो सच में छुट्टी पर ही था।” माॅनीटर की बात उनके कानो में जाती तब तक वे एक और थप्पड़ रवि को लगा चुके थे।
उपप्रधानाचार्य के रूकने पर रवि के सब्र का बांध टूट गया। ”मुझे ऐसी स्कूल में पढ़ना ही नहीं मैं तो घर जा रहा हुँ।” ऐसा बोलकर वो प्रार्थना स्थल से निकल पड़ा। पिछे से उसके सर चिल्लाए, ”जा चला जा। अब अपने पापा को स्कूल लाएगा तभी स्कूल में आ पाएगा”
रवि गुस्से से लबरेज पर मन से रूआंसा कक्षा में गया और अपना बस्ता उठा कर तेजी से वहां से चला गया। घर पहुँच कर जैसे ही रवि ने माँ और दादी को देखा तो उसकी आँखो से धड़ा धड़ आँसु पड़ने लगे। उसे रोता देख दोनो ने एक साथ पूछा ”क्या हुआ स्कूल में?”
रोते-रोते उसने सारी बात बतायी तो दोनो को बहुत गुस्सा आया पर खुद को और रवि को कैसे भी करके उसके पापा के आने तक का इंतजार करने का समझाया। पापा लंच में घर आए, तब तक रवि चुपचाप बैठा बैठा कुछ सोचता व रोता रहा।
माँ और दादी ने उसे खाना खीलाने की बहुत कोशिश की पर उसने कुछ नहीं खाया। पापा के घर आते ही रवि की दादी ने सारी बात बताते हुए, बोला ”अभी के अभी जा कर आ इसकी स्कूल और पता कर बात क्या है ? फालतु में मार दिया मेरे बच्चे को।”
पापा रवि को लेकर स्कूल पहुँचे। प्रधानाचार्य शहर से बाहर गए हुए थे और उपप्रधानाचार्य अन्य शिक्षकों साथ स्टाफ रूम में बैठे हुए थे। दोनो स्टाफ रूम पहुँचे और रवि के पापा ने उनको कहा ” सरजी गलती होने पर भले आप इसे पचास थप्पड़ मारों पर आपने तो बगैर गलती इसे मार दिया। एक बार इसकी बात तो सुनते।”
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इतना सुनते ही स्टाफ रूम में दूसरे अध्यापक भी आ गए| रवि के पापा सरकारी अधिकारी है इसलिए स्कूल में कई लोग उन्हे जानते है वे भी वहां आ गए| सर जी का गुस्सा अभी उतरा नहीं था सो उन्होने बेरूखी से जवाब दिया ”क्या हो गया मारा तो। इतना तो शिक्षक को हक होता है मारने का और गेहुं के साथ एक दो जौं पीस ही जाते है इसमें इतना बवाल काहे का।
इतने में रवि के दादा घर से होकर स्कूल पहुंचें| उनका शहर में बहुत रूतबा था जो वो सीधे स्टाफ रूम में आकर जोर से बोलने लगे, “कौन है वो मास्टर जिसने मेरे पोते को मारा है। उसकी इतनी हिम्मत मेरे बच्चे को हाथ लगाया। मैं उसका तबादला करा दूंगा।
उपप्रधानाचार्य उनके सामने आकर उनसे जोर से कुछ बोलने लगे तो उनकी बात काट कर रवि के दादा बोले ”जेल भिजवा दूंगा और नौकरी भी चली जाएगी मैंने पुलिस केस कर दिया तो।”
ये सुनते ही कक्षा के अन्य अध्यापक जो अध्यापक दल का नेता था रवि के दादा से भीड़ गया। स्टाफ रूम का माहौल अब तो ऐसा हो गया जैसे कोई सब्जी मंड़ी हो। दोनो पक्ष ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगे। बड़ी मुश्किल से रवि और उसके पापा ने दादा को शांत करा कर रवाना किया।
उनके जाते ही सारे अध्यापक उपप्रधानाचार्य और संघ के नेता अध्यापक के साथ हो गए और रवि व उसके पापा को तरह तरह के ताने मारने लगे| एक बोला ”जमाना बहुत खराब है। गुरू की कोई इज्जत ही नहीं बची है।” दूसरा बोला ”मार दिया तो क्या हो गया? अब क्या माफी मांगे पूरी कक्षा से|
एक अन्य बोला ”पुराने जमाने में लोेग स्कूल में कहने को आते थे कि मेरे बच्चे को मार मार के सुधारो और अब आज के जमाने के लोग लड़ने के लिए आ जाते है कि मेरे बच्चे को क्यों मारी।
एक के बाद एक कईयों ने अपनी भड़ास निकाली। सब के ताने सुन रवि ने अपने पापा का हाथ पकड़ा और उनसे बोला ”पापा चलो यहां से। मुझे नहीं पढ़ना इस स्कूल में। मुझे टी-सी- दिलवा दो। मै प्राईवेट ही बोर्ड की परीक्षा दे दूंगा| ये सुन कर आध्यापक बोला ”ये बात ,कदम सही है। हमें भी हमारे यहां नहीं चाहिए ऐसे विद्यार्थी|
ऐसा नहीं कहते बेटे। मैं बात कर रहा हुँ न।” रवि के पापा ने उसे समझाते हुए कहा। एक तरफ तो रवि के पापा रवि और उपप्रधानाचार्य में सुलह कराने की कोशिश कर रहे थे तो दूसरी तरफ अन्य अध्यापक उन्हें ताने मारने में व्यस्थ थे।
इन सब शोरगुल के बीच स्कूल के सबसे वरिष्ठ अध्यापक बाबुलाल अखबार पढ़ने का नाटक करते हुए सब चुप चाप देख रहे थे। आखिरकार जब उनसे रहा नहीं गया तो उठ कर बोले “ये कोई वक्त और मौका नहीं है आपसी एकता दिखाने का। इस बच्चे के साथ गलत हुआ है। हमें हमारी गलती माननी चाहिए।
हमारा काम सिर्फ पढ़ाना ही नहीं हैं। पढ़ाई के प्रति छात्रों का रूझान बनाये रखना भी हमारी जिम्मेदारी हैं। हमें हमारे सम्मान की चिंता छोडकर बच्चे के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए।”
इतना सुन कर स्टाफ रूम में ख़ामोशी हो गयी क्योंकि सभी लोग बाबुलाल की बहुत इज्जत करते थे। बाबुलालजी रवि के पास गये और उसके सिर पर हाथ फेर कर उससे बोले ”बेटा गुस्से में आदमी को सही गलत का कोई ध्यान नहीं रहता।
इस कारण उससे गलती हो जाती है। इस बात को एक बुरा सपना समझ कर भूल कर पढाई और अपने आने वाले भविष्य के बारे में सोचो।”
”पर ये सारे लोग नहीं भूलेंगे। मेरे कम सत्रांक भेजेंगे| मुझे कक्षा में नीचा दिखाएँगे मुझे जानबुझ कर तंग करेंगे ऐसे माहौल में पढ़ा नहीं जा सकता।” रवि ने उखड़े मन से जवाब दिया।”
कोई कुछ नहीं कहेगा तुझको। कोई कुछ भी कहे तो वो कक्षा छोड़ कर मेरी कक्षा में आ जाना। खाली समय में में मेरे पास आ जाना मै अतिरिक्त पढ़ा भी दूंगा तुझे। कोई टी-सी- नहीं लेना। तु तो मेरे बेटा जैसा है।
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ऐसा बोल उन्होने उसे गले लगा लिया। बाबुलाल के गले लग कर रवि का गुस्सा शांत हुआ और स्कूल में पढ़ने को तैयार हो गया। रवि को बिना गलती मिलें उस दंड और अपमान को भुलाने में कुछ वक्त लगा।
कुछ दिन बाद उसने वापस स्कूल जाना शुरू भी कर दिया। पर अब वह जब भी पढ़ने बैठता उसे वो घटना फिर याद आ जाती और पढ़ाई में उसका मन नहीं लगता।
ये बात उसने बाबुलालजी को जा कर बोली। तो उन्होने समझाया की अगर तुम अपमान का बदला लेना चाहते हो तो ईज्जत पा कर लो। पढ़ाई कर के ऐसा परिणाम लाओ की तुम्हारी पूरे स्कूल में ईज्जत हो।
जिन लोगों ने तुम्हारा अपमान किया है वो ही तुम्हारी प्रशंशा करें यही असली बदला होगा। तुम्हारा आज से यही लक्ष्य होना चाहिए। आज नही तो कल गलती करने वालों को ग्लानी जरूर होगी।”
ये बात रवि के दिमाग में ठीक से बैठ गयी और वो पढाई में लग गया। पूरे साल बाबुलालजी प्यार से उसका हौसला बढ़ाते रहे। कुछ महीनों बाद हुई बोर्ड की परीक्षा में रवि ने अच्छे से सारे पेपर हल किए।
परीक्षा परिणाम में जब रवि प्रथम श्रेणी से पास हुआ तो वह बहुत ख़ुशी से बाबुलाल सर से मिलने स्कूल पहुँचा तो उसे पता चला कि अपनी कक्षा में सिर्फ वो अकेला ही प्रथम श्रेणी से पास हुआ है।
स्कूल वालों को परिणाम से आश्चर्य हुआ फिर भी सबने उसे बधाई दी। अगले दिन अखबार में अपनी फोटो देखते ही रवि की आँख भर आई। उसने अपनी माँ को बोला ”मेरी पूरी स्कूल में बहुत सारे शिक्षक थे। पर वो शिक्षक जिनकी वजह से मुझे यह ख़ुशी मिली वो अकेले बाबुलालजी है।
वो ही है पूरी स्कूल के असली शिक्षक है।
Moral Stories in Hindi | असली शिक्षक
लेखक-धीरज व्यास, पाली
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